आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर…

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आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर…

मैंने एक कहावत बहुत बार सुनी है, लेकिन उसका मतलब मुझे तब तक पता नहीं चला जब तक मैंने लोगो को ध्यान से देखना शुरू नहीं किया..

‘गिरगिट जैसे रंग बदलना’

 वैसे मैंने कभी गिरगिट को रंग बदलते तो देखा नहीं, In fact,मैंने गिरगिट को ही नहीं देखा। लेकिन हाँ, बड़े सारे लोग जरूर देखे हैं,जो यूं रंग बदल देते हैं।

देखा जाये तो लोग 3 तरह के होते हैं…

1. वो लोग जो गिरगिट-गिरी में विश्वास रखते हैं।

2. वो जिनको इस समाज से कोई मतलब नहीं, क्यूंकि वो अपनी ही धुन में हैं। 

3. और बचे वो जो बिलकुल zebra जैसे होते हैं। जो गिरगिट जैसे बदलते नहीं। Zebra इसलिए, क्यूंकि वो कभी अपनी stripes नहीं बदलता।

यहाँ तक कि हम खुद, बहुत सारे पल होंगे, जहाँ आपने खुद महसूस किया होगा, कि shit मै तो खुद गिरगिट बन गया।  “चलता है, सब बनते है, मैं भी बन गया तो क्या” ये तो अब एक तरह का Human nature बन चुका है। एक मिनट अच्छे, दूसरे मिनट खतरनाक। एक मिनट गुस्सा, दूसरे ही मिनट हा-हा ! एक मिनट, “यार इंडिया में कुछ नहीं रखा, गंद ही गंद है,” और 15 अगस्त आने पर ही, ” मेरे देश कि धरती…” गाते हुए वो छोटा सा झंडा लहराते हुए दिखना। भाई देश को तो छोड़ दो।

कितना Confusing हो गया है सब, अब क्या पता, कौन कौनसे रूप में आपसे बात कर रहा है। और इसकी सबसे बड़ी उदाहरण  है, हमारे प्रिय Customer care service ! मैं ये नहीं बोल रही कि वो गिरगिट हैं। लेकिन उनका काम ही ऐसा है, कि उनको गिरगिट-गिरी का अवार्ड आसानी से मिल सकता है। जितना चाहे गुस्सा हो या दुखी हो, लेकिन फ़ोन की घंटी बजते ही, “Hello sir, How may I help you?” के वो शहद में डूबकी लगाते हुए वो बोल।

इसके किस्से बताने चलू तो हज़ारो निकल आएंगे, लेकिन उनमे से कुछ २ हैं, जो मैं आपके साथ जरूर सांझे करना चाहूंगी। 

3-4 महीने पहले की बात है, पहली बार था, जब मैं अकेले सफर कर रही थी। Nervous थी की मेरी साथ वाली सीट पर कौन बैठेगा। थोड़ी देर बाद देखा कि एक Lady मेरी तरफ ही आ रही थी। देखने में काफी sophisticated थी, मैं थोड़ा सा relaxed हो गयी कि चलो कोई ढंग का तो आया। और वो आ कर मेरे साथ बैठ गयी। बड़े अच्छे से हमने एक दूसरे को देख कर  वो अंजानो वाली Smile की। और ट्रैन चलने लगी। मैं अपनी किताब पढ़ रही थी, कि मैंने इसी औरत की आवाज़ सुनी, वो फ़ोन पर किसी से बात कर रही थी। किसी दूसरी औरत से बात कर रही थी शायद। ऐसा लग रहा था कि दोनों BEST FRIENDS हों। और मैं मन में सोच रही थी, इतने अच्छे से बात तो मैंने कभी अपनी बहन से नहीं की। लोगो में कितना प्यार होता है। खैर मैंने खुद को एक सीख देते हुए अपनी Book पढ़ना continue  किया। और कुछ देर बाद उन्होंने भी अपना फ़ोन रख दिया। लेकिन अभी 5 मिनट ही हुए थे कि उनको दूसरा फ़ोन आया और शायद बात यहाँ से शुरू हुई होगी की कितनी देर से तुम्हारा फ़ोन बिजी जा रहा था।

यार! क्या बताऊँ ये शशी कितना तंग करती है, फ़ोन पर फ़ोन। वो खुद तो खाली रहती है, दुसरो का समय भी बर्बाद करती है। दिमाग ख़राब कर दिया कोई काम की बात नहीं सब बकवास, उसका फ़ोन रखते ही सिरदर्द की दवा लेनी पड़ती है।

सही समझा आपने, शशी उसी औरत का नाम था, जिससे वो थोड़ी देर पहले लगभग एक घंटे तक बातें कर रहे थे। और 5 मिनट तो मुझे यही समझने में लग गए कि आखिर अभी हुआ क्या? लोग कैसे कर लेते है ये ? और मुझे पक्का पता है, जिससे वो अभी बात कर रहे थे, किसी दूसरे के साथ उनके बारे में भी ऐसे ही बोलते होंगे। लोग दिखने में कितने अच्छे लगते हैं, आप खुद Insecure होने लगते हो, कि लोगो ने खुद को कैसे maintain किया है। लेकिन अगर वहीं लोग ऐसे करें, तो आप समझ ही नहीं पाते हैं, कि आखिर में Reality है क्या।

मैंने तो ये चीज अपने परिवार, अपने रिश्तेदारों में भी महसूस की है। मैं और मेरा भाई, बचपन से ही फैमिली-फंक्शन्स में हमेशा अलग से रहते थे। क्यूंकि हमारे cousins को हम बोरिंग लगा करते थे। उन्होंने कभी हम से ना अच्छे से behave किया, ना ही कभी बुलाया। लेकिन फिर अचानक से मैंने यह गिरगिट-पना देखा। अब मेरे भाई का खुद का बिज़नेस है, और उसके ऑफिस मैं 100-150 employee काम करते हैं। मै भी उन सभी cousins से हट कर social work करने लगी तो कुछ अच्छे relation बन गए। तो अचानक से उनको हम से फायदा दिखने लगा।  और अब वो हमसे बात करने के बहाने ढूंढते हैं। ये सब गिरगिट-गिरी मेरे समझ से तो परे है, लेकिन लोग इसमें काफी निपुण होते जा रहे हैं।

लोग अपने-अपने काम के मुताबिक अपने रूप बदलते हैं। काम निकलने के बाद बदला हुआ रूप भी उनका असली रूप नहीं होता। क्यूंकि ऐसे लोगो का असली रूप हम कभी पता नहीं कर सकते। यहां तक कि हमारे माता-पिता को भी पता नहीं चल पाता कि हम किस रूप में रह रहे हैं। लोग हमे इतने रूप दिखा देते हैं कि उनके आख़री पलों में भी हम ये पता नहीं लगा पाते कि इनका असली रूप था कोनसा।

खैर, बाद मैं कहना तो पड़ता ही है की “अच्छा इन्सान था”।

लेकिन हाँ कुछ गिरगिट लोग अच्छे भी होते हैं। क्यूंकि गिरगिट सिर्फ रंग बदलता हैं, अच्छे रंग में आना या बुरे में बदल जाना, वो हमारी मर्ज़ी हैं। जैसे…

~ एक नई जगह पर आ कर, खुद को उसी रंग में रंग लेना।

~ एक व्यक्ति से उसी तरह बर्ताव करना जिस से उसे बुरा ना लगे।

आप समझ गए होंगे की मैं किसकी बात कर रही हूँ- ये एक अच्छे रंग में ढल जाना कहलाता है।

लेकिन एक पल में किसी का Best friend बन कर, दूसरे पल उसी को सबके सामने नीचा दिखा देना। मुसीबत पढ़ते ही लोगो से दोस्ती कर लेना,  या 24*7 एक नक़ाब डाले बैठना। ये सिर्फ आपको ज़िन्दगी भर का एक Tag दे जाता है, और वो है..

गिरगिट कहीं का!”- लेकिन भाई लोगों एक request है की दोस्तों को बक्श देना, उन्हें रंग मत दिखाना

Dr. Geetanjli
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