भूख तो रिश्तों को भी लगती हैं

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ये रास्ता आज पत्तों से भरा हुआ था, शायद तूफ़ान आने वाला था कोई। वो गर्मियों के दिनों में हल्की सी skin को छू कर ठंडा सा स्पर्श देने वाली हवा इन पत्तों को बड़ी प्यारी सी आवाज़ के साथ गिरा रही थी। सायरा की routine बन गयी थी, हर शनिवार को 1 किलोमीटर दूर एक church में जाना। पहली बार जाने में बड़ा संकोच किया था उसने। लेकिन आज दो साल बाद, वो जगह बिलकुल अपनी सी लगती है।

अचानक किसी घर से आती एक संगीत की आवाज़ ने सायरा के क़दमों को एक पल के लिए रोक दिया। इस धुन को सुनते ही सायरा के अंदर एक अलग सी तरंग चलने लगी जो उसे अतीतकी गहराईओं मे ले गयी। यही संगीत सायरा के घर रोज सुबह लगा करता था। माँ का सबसे favorite था ये।

क्या याररोज एक ही song! बोर नहीं होते क्या आप लोग?”

कहते हुए रोज सायरा सैंडविच मुँह में डाले ऑफिस को चले जाया करती थी।

अचानक से सायरा को लगा कि कुछ जल रहा है उसकी आँखों में ”या कोई आंसू था शायद” 

अभी भी एक-एक पल याद था उसे। कैसे झगड़ा कर घर से ‘पीछा छुड़वाया था’।

“पीछा छूटा”

यही वो शब्द थे जो 2 साल पहले घर छोड़ते हुए सायरा ने बोले थे। बड़ी happening सी लगती थी ये नई ज़िन्दगी। ना कोई रोक-टोक, ना कोई बक-बक. ना वो बाबा की जोर-जोर से हसने की आवाज़, जो कभी कभी बड़ी तंग करती थी। और ना माँ का “रोज बाहर का खाती रहा कर बस” बोल कर टोकना। Church बस अब कुछ ही मीटर दूरी पर था, लेकिन वो मीठी सी चलने वाली हवा कब तूफ़ान में बदल गयी, सायरा को कुछ पता नहीं था। वो इस आंधी से बचने के लिए एक दुकान के नीचे रुक गयी। लेकिन वो यादें, ये दिमाग, रुकने को तैयार नहीं था शायद।

बाबा ने घर से निकलने के बाद पहली call पर डांटा नहीं था,

अच्छे से पहुँच गयी? आज तक याद हैं बाबा के ये 4 शब्द, आज लगता है वो कुछ कहना चाहते थे। और उसने इसका जवाब बड़ी खिजी हुई सी आवाज़ में दिया था। दूसरी लाइन पर उसकी बेस्ट फ्रेंड का फ़ोन जो आ रहा था।

 “Friends are the best thing that ever happened to me!” 

यही मंत्र था उसकी ज़िन्दगी का। घर, रिश्ते तो साथ ही रहेंगे, दोस्त चले गए तो वापिस नहीं आएंगे। ये सोच रखने वाली वो 21 साल की लड़की आज इस भरे तूफ़ान में अकेले खड़ी थी।  दोस्त, पड़ोसी, ऑफिस के कैंटीन वाले भईया.. इन सब के लिए बहुत सा समय था उसके पास, लेकिन घर से फ़ोन आता देख, क्या यार!” यही 2 शब्द निकलते थे उसके मुँह से।

कितना अच्छा समय था ना वो। वो एक साल शायद उसके लिए उसकी ज़िन्दगी का सबसे खास साल था। उस एक साल में वो आज़ाद थी। एक साल में वो एक बार भी अपने घर नहीं गयी। कितनी मुश्किल से तो पीछा छुड़वाया था। अपनी माँ-बाबा की एकलौती औलाद थी। शायद इसीलिए ये इतनी सारी attention ही तंग कर गयी।

और अचानक से सायरा के फ़ोन की घंटी बजी।

“हाँ-हाँ मैं ठीक हूँ। और सुनो, I Love You” माँ

उसी एक साल में एक और रात आयी, जिसने सब बदल दिया। बिलकुल ऐसे ही घंटी थी वो। जब उसके पड़ोसी ने उस 2016 के तूफ़ान के बारे में बताया था। उनका वो पुराना सा घर जिनको ठीक करवाने की हिम्मत माँ-बाबा में से किसी के पास नहीं थी, और जिसे सायरा ने कभी अपनी जरूरत नहीं समझा, वो टूट चूका था। उस समय उसको सिर्फ वो “पीछा छूटा” के दो शब्द ही सुनाई दे रहे थे। उसको आज भी याद है, कैसे उसने उन डॉक्टर्स के पैर दबाते हुए, अपने माँ-बाबा को ठीक कर देने की request की थी। बाबा की वो तंग करने वाली हसी वो आज खुद सुनना चाहती थी। लेकिन वो शायद बाबा की आखरी हसी थी। 

तूफ़ान थोड़ा थम गया था, church से निकलते हुए उसने कुछ फूल और माला खरीदी और सीधा घर की तरफ बढ़ी। ये सब यादें और अपने रिश्तों को ना निभाने का guilt शायद ज़िन्दगी भर उसके मन में रहेगा। लेकिन रिश्तों की एहमियत, रिश्तों का मतलब क्या होता है, शायद वो अब समझ चुकी थी। रिश्ते आपको रिश्ता निभाने का समय नहीं देते। लेकिन उस समय को ज़िन्दगी भर याद रखने के लिए यादें जरूर दे जाते हैं।

एक सुकून सा मिलता था सायरा को चर्च मैं अकेले बेठ कर। बाबा को बहुत पसंद था हर शनिवार चर्च आना।

सायरा ने दरवाज़ा खोला, और वो लायी हुई माला बाबा की तस्वीर पर लगा दी।

क्या खायेगी?

पीछे से एक प्यारी सी आवाज़ आयी। माँ आज भी बाहर का खाना खाने पर डांटती है। लेकिन फर्क इतना है, अब मैं उनको अपने साथ ले जाती हूँ। Wheel chair पर होने के बावजूद, पूरा दिन सिर्फ मेरे लिए ही लगी रहती है। शायद यही होते है कुछ रिश्ते, जो बिना कुछ लिए अपना सब देने को तैयार रहते हैं।

बहुत कुछ खोया हुआ महसूस करती हूँ आज और बहुत अफ़सोस होता है उन दो शब्दों पर क्या यार!” और पीछा छूटा”. 

भूख तो रिश्तों को भी लगती हैं, शायद समय उनके लिए सबसे अच्छा भोजन है और वही हम दे नहीं पाते!

काश! …

Dr. Geetanjli
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