बचपन बुढापा एक समान

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OLD AGE AS SECOND CHILDHOOD

“आज बचपन तो कल बुढ़ापा है, कितना भी संभाल कर रख लो दोस्त |

समय फिर से ले आता है |”

हम में से ऐसे बहुत से लोग हैं जो आज भी Karma में  विश्वास करते हैं | And this Life Circle really IS all about Karma ! सबसे पहले आप एक बच्चे का किरदार निभाते हो, फिर आप खुद अपने बच्चो को संभालते हो | और एक समय बाद आपके बच्चे आपको संभालते हैं, बिलकुल उनके बच्चो की तरह | और ये Circle ऐसे ही चलता जाता है |

कहा जाता है की बुढ़ापा बचपन की तरह होता है, लेकिन ये बात मुझे समझ में तब आई जब मैं एक ऐसी ही उदाहरण से मिली | एक औरत अपनी माँ  जिनकी उम्र 85 साल है उन का ध्यान रख रही है | और मिलने पर उसने मुझे बताया कि कैसे उनकी माँ का ध्यान रखना बिल्कुल बच्चो का ध्यान रखने जैसा है | बल्कि बच्चो से भी ज्यादा मुश्किल है | लेकिन एक अंतर जो उसको बहुत परेशान करता है, कि हम बच्चो को बड़ा होता देख कर बहुत खुश होते हैं | लेकिन बड़ो को और बड़े होते, पर और दर्द में देखना बिल्कुल आसान नहीं होता | पर इस उम्र की सबसे प्यारी बात, जो हमेशा उसके चेहरे पर मुस्कराहट लाती है, वो है उसकी माँ का फिर से बच्चा बन जाना | बिलकुल बच्चो जैसा किसी चीज को लेकर ज़िद करना | छोटी सी बातो पर बच्चों जैसे रूठ जाना | और फिर बच्चो को उनका ध्यान रखते हुए देख उनको, ” मेरी माँ मत बन” कहना | ये सब एक अलग सी ही मुस्कान दे जाता है |

Age is Just a Number
Age is Just a Number

और एक ऐसा समय भी आता है, जब हमारे बच्चे हम से ज्यादा हमारे माता-पिता मतलब कि उनके दादा-दादी से ज्यादा Connect  होना शुरू कर देते है | क्यूंकि बच्चो को वो बिलकुल अपने जैसे लगते है | वो मस्ती करना, खाना खाने पर नाक चढ़ाना और बच्चो की हर बात मानना, अब वो दादा-दादी से अच्छा कौन कर सकता है | और देखा जाये तो, बच्चो के लिए अपने दादा-दादी की company में रहना  बहुत जरूरी भी है | क्यूंकि वे एक झटके में वो समझा सकते है, जिसको सीखने में उन्होंने पूरी ज़िन्दगी लगा दी |

देखे तो, हम अपनी ज़िन्दगी जहाँ से शुरू करते हैं, वही आकर ख़तम भी कर देते हैं | जिस तरह छोटे बच्चो का चल नहीं पाना, बोल नहीं पाना और फिर जब कोई उनकी बात ना समझे तो frustrate होकर रोने लग जाना | हम ये सब अपने बढ़ो की बढ़ती हुई उम्र में अनुभव करते हैं | एक और समानता जो मुझे नहीं मालूम आपने कभी ये महसूस किया होगा | लेकिन हम यह कह सकते है, कि बच्चो और बड़ो दोनों में एक Supernatural power  होती है | जिसको बढ़ो में Experience कहा जा सकता है और बच्चो में वरदान | जिस तरह बच्चा सिर्फ एक Touch से इंसान किस नीयत से उसको उठा रहा है, कौन उनको प्यार से देख रहा है, ये सब जान जाते है | उसी तरह बड़ो का तजुर्बा एक इंसान को अंदर से जानने के लिए काफी होता है | 

दोनों ही बिना कुछ मांगे बस प्यार देते हैं |  बड़ो की ज़िद्द, उनकी पसंद ना पसंद, रोज कुछ नई फरमाईश बिलकुल बच्चो के जैसे हो जाती है | लेकिन एक अंतर जैसे मैंने बताया जो हमें हमेशा दुखी करता है | हम बच्चो के जन्म, उनको बढ़ते देख बड़ा खुश होते हैं | लेकिन इसी तरह हम बड़ो को बढ़ते हुए देखे तो हम उनको बोझ समझने लगते है | हम ये नहीं समझ पाते कि वो आपसे बस वही प्यार मांग रहे हैं , जो उन्होंने आपको इतने सालों से दिया | लेकिन हमे तो अपने busy schedule में घर से आये फ़ोन को busy करने  में भी कोई हिचक नहीं आती |

जितना मैंने सीखा और देखा, मुझे हमेशा यही लगता है की ये ज़िद्द, रूठना ये सब इसलिए नहीं कि उनको आपसे कुछ महंगी चीजें चाहिए | एकलौती चीज जिसकी वो आपसे आशा करते हैं, वो है आपका समय | बच्चा हो या हमारे बड़े, उनको सिर्फ आपके समय और प्यार से मतलब है | और एक बार उनको ये मिल जाये, वो आपको हमेशा खुश दिखेंगे |

भाग के इस दौर में, अपनों को पीछे छोड़ आगे चले आते हैं,

आज जवानी की मौज़ में, कल के बुढ़ापे की सोच से डर जाते हैं,

जी ले इस समय में, कई बार ये समय के चक्र खुद को दोहराने से कतराते हैं |

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