प्रणाम इज्ज़त या मजबूरी

“अरे सुन! ये वही खड़ूस मामा है, जिसने इतना सुनाया था Last Time! पता नहीं लोग क्या समझते है खुद को। ये ले यही आ रहा है, मुँह लगना पड़ेगा अब इस खड़ूस के…ओह! प्रणाम मामा जी, कैसे हैं आप?” 

Sorry for the language, लेकिन ये असल में हम सब की रोज की कहानी है। मैं ये नहीं कह रही कि हम इज़्ज़त नहीं करते लेकिन… समझ रहें है ना आप? अब संस्कार और रीत है तो निभानी पड़ती है, क्या करे। नहीं तो घर से जूते कौन खाये अब। वैसे भी एक शब्द बोलने में क्या जाता है।

देखा जाये तो कही न कही तो हम सब ही संस्कारी हैं, लेकिन ये concept थोड़ा टेढ़ा नहीं है? मेरा मतलब है, ये नमस्ते, प्रणाम वगेरा तो इज़्ज़त दिखाने का एक तरीका है ना? तो वो लोग जिनकी हम इज़्ज़त ही नहीं करते, या शायद पीछे से कभी गाली भी दी हो, हम उनको भी ये प्रणाम चिपका देते हैं। प्रणाम एक बड़ा ही Respected शब्द समझा जाता है। जो संस्कृत के दो शब्दों से बना है। प्र और णाम। जिसमे प्र का मतलब है आगे और णाम का मतलब है झुकना। किसी के आगे इज़्ज़त से झुकने को प्रणाम के नाम से जाना जाता है। तो क्यों मज़ाक बनाना उस शब्द का, जिसको हमारे गुरुओ ने इज़्ज़त का नाम दिया हो।

इस से  हम proof क्या करना चाहते हैं? कि हम बहुत संस्कारी हैं? लेकिन क्या सच में इतने संस्कारी है हम? किसी के गाली देने पर उसे गले लगा सकते हो क्या? नहीं ना? लेकिन आप चाहे या अनचाहे यही कर रहे हो। आप सही सोच रहे हो, कि ये सब लिखना और सोचना आसान होता है, ऐसे किसी को cut off कैसे कर सकते हैं। सोसाइटी क्या कहेगी।

“सोसाइटी क्या कहेगी”

हम लोग नयी generation बन कर चाहे जितना Dialogue-baazi कर लें, कि हमे सोसाइटी से कोई डर नहीं लगता। हम तो नयी पीढ़ी हैं। हम तो देश ऐसे ही बदल देंगे। blah-blah और blah। लेकिन भाई सच यह है कि डर सबको  लगता है। डर नहीं लगता तो अब तक ये मुफ्त के प्रणाम नहीं बाँट रहे होते ।

चलो एक Incident बताती हूँ, जो शायद हर घर में होता होगा। एक पूरा Scene चल रहा होता है जब घर में कोई रिश्तेदार आता है। एक तो हमारे Parents! करते वो हमारे भले के लिए ही हैं लेकिन उस वक़्त ये बहुत Irritate करता है। कभी मिले भी नहीं होंगे उस शख्स से, और उसे हमारा मामा/चाचा बना देंगे। और फिर उन ही के सामने जोर-जोर से बुलाएँगे।

“बेटा, बिटू चाचा आये हैं। आओ मिलो तो उन से।” पहली बात तो मुझे क्या पता बिटू कौन है, और चाचा? पापा की तो सिर्फ एक बहन है? Shit दादू की दूसरी शादी? NO….

अब बेचारा इंसान इसी सोच में होता है, कि उसको दूसरी आवाज़ लगा दी जाती है। अब ऐसे में मना तो कर नहीं सकते। जाना पड़ता है। और फिर जा कर वो strangers cum अभी- अभी-रिश्तेदार-बनने-की-बधाई-हो-वाली स्माइल दो।आधा समय तो इन हाथो का क्या करे वही सोचने में चला जाता है। फिर दिमाग में आता है, नमस्ते कर और भाग! Idea! रसोई से पानी ले और सीधा रूम में! And Mission successful! 

और कितने अत्याचार होंगे हम बेचारो पर? मेरा तो वैसे भी मानना है,कि सम्मान करना है तो दिल से करो। Respect आपकी आँखों, आपके हाव-भाव से दिखती है, उस एक शब्द से नहीं, जिस तरह Indian Culture में, घूँघट को शर्म और इज़्ज़त का प्रतीक समझा जाता है। लेकिन ऐसी शर्म का मुर्रब्बा बनाओगे, जो कमरे में जाते ही आपको गालिया दे? 

” क्या गर्मी में घूँघट रखो,खुद तो खुले में घुमता है,बूढ़ा कही का।” मिल गई इज़्ज़त? 

इज़्ज़त प्यार और आज़ादी में है। इज़्ज़त एक दूसरे को समझने और एक दूसरे को एक सामान देखने में है। अगर आप गलत  बर्ताव करने के बाद या कुछ गलत करने के बाद भी किसी से इज़्ज़त कि उम्मीद रख रहे हैं, तो शायद आप ही गलत मांग रहे हैं। मैं जानती हूँ कि मुझे कुछ ऐसा बोलना चाहिए था कि आज कल प्रणाम का मतलब खत्म होता जा रहा है, हमे इज़्ज़त करनी चाहिए या ऐसा कुछ। लेकिन ये आप भी जानते है, कि किसी को बोलने या किसी के पढ़ने से ये दुनिया नहीं बदलेगी। जरूरत है, तो सिर्फ एक नज़रिये की। इज़्ज़त ना करने वालो कि जगह, जो इज़्ज़त deserve ही नहीं करता, उनको भी देखा जाये तो शायद कुछ बदलाव लाया जा सके।

क्यूंकि इज़्ज़त मांगने की नहींकमाने की चीज है।

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